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क्या खोया क्या पाया…

Social Stability
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आज कल अखबार पढ़ कर या समाचार सुनकर कुच्छ भी अच्छा कम ही सुनने या देखने को मिलता है…. ऐसा तो आपने भी महसूस किया होगा ? क्या आपको ऐसा नहीं लगता है की आज के समय से अच्छा माहौल तो तब था तब हम अंग्रेजों के गुलाम थे….? क्या ज्यादा फर्क पड़ा तब से अब तक? हम तब भी आपस में लड़ते थे आज भी लड़ रहे हैं…. फर्क बस इतना है की तब अंग्रेज हमें आपस में लड़वाते थे अब अंग्रेजों की जगह राजनितिक पार्टिओं ने ले ली है…. तब हमें हिन्दू-मुसलमान या किसी अन्य जाती धर्म के आधार पे लड़ाया जाता था पर आज कई अलग – अलग मुद्दों को उठा कर हमें लड़ाया जाता है | कभी जाती , कभी धर्म, कभी आरक्षण…..आखिर कब तक? कब तक चलेगा ये सब ?? इतनी मुश्किल से हमें आज़ादी मिली है खैर काहे की आज़ादी ये तो सिर्फ कहने की आज़ादी है वास्तविकता में तो हम आज भी गुलाम है…. हम अपने देश में आजादी से कहीं आ-जा नहीं सकते क्यूंकि कहीं मराठी मानुष का बोल बाला है तो कहीं के पूरा कानून ही अलग है ….अगर ऐसा ही है तो क्यूँ नहीं हम उस हिस्से को (कश्मीर) अलग कर देते…क्यूंकि उसे अपना कहने की तो हमारी नपुंसक सरकार की औकात ही नहीं है | आखिर हम कब समझेंगे की हम इंसान है और हमें जानवरों की तरह नहीं लड़ना चाहिए… मतभेद कहाँ नहीं होते पर इसका मतलब ये नहीं होना चाहिए की हम आपस में लड़ कर इसका फैसला करें…. सोचिये…. ये सब हमारे और हमारे देश के विकास में एक बाधा है | अफवाहों से दूर रहिये…. आपसी सौहार्द बनाये रखिये…. इसी में हम सब की भलाई है और तरक्की भी…. ध्यान रखियेगा….और हाँ अपना ख्याल भी…

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